छठ पर्व क्यों मनाया जाता है, क्या है मान्यता?
Chhath Puja kahani in Hindi: जैसा की आप सब जानते हैं कि हमारे सनातन धर्म में छठ पर्व (Chhath Puja), छइठ या षष्ठी पूजा कार्तिक शुक्ल पक्ष के षष्ठी को मनाया जाने वाला एक प्रमुख हिन्दू फेस्टिवल है।
सूर्योपासना का यह फेस्टिवल मुख्य रूप से बिहार, झारखण्ड, पश्चिम बंगाल, पूर्वी उत्तर प्रदेश और नेपाल के तराई क्षेत्रों के साथ ही अब पूरे देश में बड़े ही हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। छठ पूजा (Chhath Puja) मैथिल, मगध और भोजपुरी लोगो का सबसे बड़ा पर्व है या यूं कहें की ये उनकी संस्कृति है।
सनातन परंपरा में आस्था के महापर्व छठ पूजा (Chhath Puja) का बहुत ज्यादा महत्व है। भगवान सूर्य और छठी मईया की पूजा से जुड़ा यह त्योहार बिहार, उत्तर प्रदेश, झारखंड समेत अब देश के कोने-कोने में बड़ी धूम-धाम से मनाया जाता है।
परिवार की सुख-समृद्धि और संतान के सौभाग्य के लिए की जाने वाली छठ पूजा (Chhath Puja) में व्रती को तीन दिनों तक कठिन नियमों को पालन करना पड़ता है। छठ व्रत को करने वाली व्रती महिलाओं को कठिन तप करते हुए तकरीबन 36 घंटे तक बगैर कुछ खाए-पिए रहना पड़ता है।
आइए जानते हैं छठ पर्व से जुड़ी कहानियों के बारे में (Chhath Puja kahani in hindi)
छठ पूजा (Chhath Puja) द्वारा सूर्य की आराधना कब से प्रारंभ हुई इसके बारे में पौराणिक कथाओं में बताया गया है। सतयुग में भगवान श्रीराम, द्वापर में दानवीर कर्ण और पांच पांडवों की पत्नी द्रौपदी ने सूर्य की उपासना की थी। छठी मैया की पूजा से जुड़ी एक कथा राजा प्रियवंद की है, जिन्होंने सबसे पहले छठी मैया की पूजा की थी।
आइए जानते हैं कि सूर्य उपासना और छठ पूजा का इतिहास (History of Chhat Puja) और कथाएं (Chhat Puja Story) क्या हैं।
राजा प्रियवंद ने पुत्र के प्राणों की रक्षा के लिए की थी छठ पूजा (Chatt Puja)
एक पौराणिक कथा के अनुसार, राजा प्रियवंद नि:संतान थे, उनको इसकी बहुत पीड़ा थी। उन्होंने महर्षि कश्यप से इसके बारे में बात की। तब महर्षि कश्यप ने संतान प्राप्ति के लिए पुत्रेष्टि यज्ञ कराया। उस दौरान यज्ञ में आहुति के लिए बनाई गई खीर राजा प्रियवंद की पत्नी मालिनी को खाने के लिए दी गई। यज्ञ के खीर के सेवन से रानी मालिनी ने एक पुत्र को जन्म दिया, लेकिन वह मृत पैदा हुआ था। राजा प्रियवंद मृत पुत्र के शव को लेकर श्मशान पहुंचे और पुत्र वियोग में अपना प्राण त्यागने लगे।
उसी वक्त ब्रह्मा की मानस पुत्री देवसेना प्रकट हुईं। उन्होंने राजा प्रियवंद से कहा मैं सृष्टि की मूल प्रवृत्ति के छठे अंश से उत्पन्न हुई हूं इसलिए मेरा नाम षष्ठी भी है। तुम मेरी पूजा करो और लोगों में इसका प्रचार-प्रसार करो। माता षष्ठी के कहे अनुसार, राजा प्रियवंद ने पुत्र की कामना से माता का व्रत विधि विधान से किया। उस दिन कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी थी। इसके फलस्वरुप राजा प्रियवद को पुत्र प्राप्त हुआ।
श्रीराम और सीता ने की थी सूर्य उपासना
एक अन्य पौराणिक कथा के अनुसार, लंका के राजा रावण का वध कर अयोध्या आने के बाद भगवान श्रीराम और माता सीता ने रामराज्य की स्थापना के लिए कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी को उपवास रखा था और सूर्य देव की पूजा अर्चना की थी।
द्रौपदी ने पांडवों के लिए रखा था छठ व्रत
कुछ पौराणिक कथाओं में छठ व्रत के प्रारंभ को द्रौपदी से भी जोड़कर देखा जाता है। द्रौपदी ने पांच पांडवों के बेहतर स्वास्थ्य और सुखी जीवन लिए छठ व्रत रखा था और सूर्य की उपासना की थी, जिसके परिणामस्वरुप पांडवों को उनका खोया हुआ राजपाट वापस मिल गया था।
दानवीर कर्ण ने शुरू की सूर्य पूजा
महाभारत के अनुसार, दानवीर कर्ण सूर्य के पुत्र थे और प्रतिदिन सूर्य की उपासना करते थे। कथानुसार, सबसे पहले कर्ण ने ही सूर्य की उपासना शुरू की थी। वह प्रतिदिन स्नान के बाद नदी में जाकर सूर्य को अर्घ्य देते थे।
छठ महापर्व (Chhat Puja) में महिलाओं द्वारा निर्जला व्रत रखते हुए अस्ताचलगामी सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है। हमारी सनातन संस्कृति में यह एकमात्र ऐसा पर्व है जिसमें डूबते हुए सूर्य की भी पूजा व उपासना की जाती है।
दुनिया कहती है कि जिसका उदय हुआ है उसका डूबना निश्चित है, लेकिन छठ महापर्व सिखाता है कि जो डूबता है उसका उदय भी निश्चित है।
प्रत्यक्ष देव, सूर्य देव की उपासना के महापर्व ' छठ ' की आप सभी को हार्दिक शुभकामनाएं।