देश में बढ़ते भ्रष्टाचार के लिए दोषी कौन?

चाहे सरकार कोई भी क्यों न हो, भ्रष्टाचार बुलेट ट्रेन से भी तेज रफ्तार से चलता है। इसे रोक पाना किसी के भी बस की बात नहीं है, क्योंकि भ्रष्टाचार देश के हर नागरिक के अंदर अपनी गहरी जड़ें जमा चुका है। 

ऐसा नहीं है की देश में 100% लोग भ्रष्ट ही हैं लेकिन जो घूसखोर और भ्रष्ट नहीं हैं उनको भी लोग जबरदस्ती लालच देकर या दबाव बनाकर घूसखोर और भ्रष्ट बना देते हैं। और जो सरकारी मुलाजिम घूस लेने के लिए नहीं तैयार होता उसे बहुत कुछ भुगतना भी पड़ता है। ईमानदार कर्मचारी, अधिकारी अक्सर या तो सस्पेंड रहते हैं या किसी वीरान बीहड़ में पोस्टिंग झेलते हैं। ऐसे लोगों की नौकरी में तरक्की के रास्ते भी बंद हो जाते हैं।

हमारा भ्रष्ट सिस्टम किसी को ईमानदार रहने ही नहीं देता, क्योंकि लोगों को अपना गलत काम घूस देकर कराना है तो उन्हें तो घूसखोर ही चाहिए। 

दुनिया का सबसे छोटा संविधान चीन का है लेकिन कोई अपराधी बचता नहीं और सबसे भारी भरकम संविधान भारत का है जहां कोई अपराधी फंसता ही नहीं।

सरकारी राशन की दुकान पर भीड़ देखिये, हाथ में 20,000 का मोबाइल लेकर 80,000 की बाइक पर बैठकर 2 रुपये किलो चावल लेने आते हैं, ये गरीब लोग हैं।

हाथ में 50,000 का फोन चेहरे पर 10,000 का चश्मा, इन महिलाओ को दिल्ली में बस का सफर फ्री है ।

बैंक में जनधन खाते से पांच सौ रुपए निकालने के लिए पति अस्सी हजार की मोटरसाइकिल पर पत्नी को लाता है और पूछता है की अगले पैसे कब तक आयेंगे।

प्रधानमंत्री आवास योजना में ग्राम प्रधान अपात्र लोगों को भी पात्र दिखाकर उनका आवास पास करा देता है क्योंकि उसे हर एक से 25-30 हजार रुपए घूस खाना है तो जितने ज्यादा लोगों का आवास पास कराएगा उतनी ही ज्यादा उसकी भी कमाई होगी।

गांव गांव शौचालय बने तो जिनके शौचालय पहले से ही बने हुए थे उनसे भी ग्राम प्रधानों ने साठ गांठ कर योजना में बना दिखाकर पैसे बांटकर खा लिए।

फिर भी आप कहते हैं की सरकार कुछ नहीं कर रही है। अब दोष सरकार का है या हमारे भ्रष्ट सिस्टम का? 

सरकार ने तो योजनाएं जरूरतमंदों के लिए चलाई लेकिन हमारे भ्रष्ट सिस्टम ने अपात्रों को पात्र और पात्रों को अपात्र बना दिया।

जिस देश में नसबन्दी कराने वाले को सरकार की तरफ से सिर्फ़ 1500 रुपए मिलतें हों और बच्चा पैदा होने पर 6000 रुपए मिलते हों उस देश में जनसंख्या कैसे नियन्त्रित होगी? 

नतीजा ये है की कोई 1500 रुपए लेकर इस नियम का पालन करता है तो कोई 6000 रुपए लेकर अपनी जनसंख्या को दिन दूनी रात चौगुनी बढ़ाने के मिशन में लगा है।

आइए अब आपको एक कहानी सुनाते हैं-

एक बादशाह ने गधों को क़तार में चलता देखा तो धोबी से पूछा, "ये कैसे सीधे चलते है?"

धोबी ने जवाब दिया, "जो लाइन तोड़ता है उसे मैं सज़ा देता हूँ, बस इसलिये ये सीधे चलते हैं।"

बादशाह बोला, "मेरे मुल्क में अमन क़ायम कर सकते हो?" धोबी ने हामी भर ली।

धोबी शहर आया तो बादशाह ने उसे मुन्सिफ बना दिया तभी एक चोर का मुक़दमा आ गया, धोबी ने कहा चोर का हाथ काट दो।

जल्लाद ने वज़ीर की तरफ देखा और धोबी के कान में बोला, "ये वज़ीर साहब का ख़ास आदमी है।"

धोबी ने दोबारा कहा इसका हाथ काट दो, तो वज़ीर ने सरगोशी की कि ये अपना आदमी है ख़याल करो।

इस बार धोबी ने कहा, "चोर का हाथ और वज़ीर की ज़ुबान दोनों काट दो। 

और इस एक फैसले से ही मुल्क में अमन चैन क़ायम हो गया।

बिलकुल इसी न्याय प्रणाली की जरुरत अब हमारे देश को भी है।

जरा सोचिए, गांव के सरपंच (ग्राम प्रधान) का वेतन सिर्फ 3000 से लेकर 5000 रुपए तक होता है, लेकिन समझ में नहीं आता कि वही सरपंच दो साल बाद ही बोलेरो, स्कॉर्पियो या फॉर्च्यूनर जैसी महंगी एसयूवी कहाँ से खरीद लेते हैं?

इस देश में जब एक ग्राम प्रधान या पार्षद इतना लूट लेते हैं की महंगी SUV से चलने लगते हैं तो इनके ऊपर वाले जन प्रतिनिधियों की कमाई का अंदाजा तो आप लगा ही सकते हैं।

ऐसे ही नहीं एक मामूली से ग्राम प्रधान या पार्षद के चुनाव को जीतने में लोग लाखों-करोड़ों रुपए खर्च कर रहे हैं। 

एक बार जीतने की देर है कुबेर का खजाना हाथ आ जाता है इन जन प्रतिनिधियों के। 

विधायक निधि का 40% विधायक के पास आ जाता है वापस

आप लोगों को जानकर हैरानी होगी की एक विधायक (MLA) जिसकी विधायक निधि अब 5 करोड़ रुपए प्रतिवर्ष है यानी 5 वर्ष में 25 करोड़ की विधायक निधि मिलती है एक विधायक को खर्च करने के लिए।

अब इस विधायक निधि का खेल ये है की सब कुछ पहले से ही फिक्स होता है। पता चला है की जब भी कोई विधायक अपनी विधायक निधि में से अपने क्षेत्र में किसी काम के लिए धन देता है तो उस धनराशि का 40% पैसा बाद में उस विधायक को लौटा दिया जाता है। यही एक विधायक की कमाई का असली जरिया है।

अब आप अंदाजा लगा सकते हैं की हर साल एक विधायक अपनी विधायक निधि 5 करोड़ का 40% यानि की 2 करोड़ तो शुद्ध रूप से डकार जाता है। मतलब की 5 साल की विधायकी में 10 करोड़ तो यूं ही आ गए विधायक जी के पास, तो फिर इससे बढ़िया बिजनेस कोई और हो सकता है क्या इस दुनिया में?

हमारे भ्रष्ट सिस्टम ने देश में भ्रष्टाचार का एक अलग सिस्टम बना दिया है जो अपने तरीके से देश को चला रहा है। इस सिस्टम को कोई तोड़ नहीं सकता क्योंकि देश का हर व्यक्ति इसी सिस्टम से चलने का आदि हो चुका है।

यदि भ्रष्टाचार इसी रफ्तार से बढ़ता रहा तो जनसंख्या में हम नंबर वन हो ही चुके हैं वो दिन दूर नहीं जब भारत दुनिया के सबसे भ्रष्ट देशों में भी पहले पायदान पर होगा।

जिस देश में लोग 10-20 रुपए के लिए अपना ईमान बेचते हों उस देश में नायक फिल्म के हीरो अनिल कपूर जैसा कोई हीरो आयेगा और आकर सबको सुधार देगा, यदि आप भी ऐसा सोचते हैं तो सोचते रहिए, सोचने में क्या जाता है। अभी तक सोचने पर GST नहीं लगाया है सरकार ने।

100 में 99 बेईमान, फिर भी मेरा देश महान।

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