जनता कंगाल, लूटने वाले मालामाल, क्या यही हैं अच्छे दिन?

क्या मात्र चोरी, डकैती, लूटपाट, हत्या, बलात्कार ही अपराध है?

क्या कालाबाजारी, घटतौली, सामानों में मिलावट करना, मनमानी कीमत वसूलना, आदि अपराध नहीं है?

आखिर महंगाई बढ़ाना, मिलावटी सामान बेचना, कालाबाजारी करने जैसे अपराधों और पापों का जिक्र धर्मग्रंथो, धर्मगुरुओं, विद्वानों और नेताओं की जुबान पर क्यों नहीं है?

टीवी पर इन पापों का जिक्र करते हुए किसी बाबा को कभी क्यों नहीं दिखाया जाता?

गरीब से गरीब ग्राहक से भी क्रूरतापूर्वक अधिकतम टैक्स लेना, फायदा उठाना और उसका प्रयोग मात्र अपने निजी स्वार्थ के लिए करना, आज के समय में इससे बड़ी क्रूरता और अपराध भला क्या हो सकता है?

निर्धन और दिहाड़ी मजदूरी पर जीने वाले लोगों का भी इलाज डॉक्टर ऊंची फीस लेकर ही करता है. बहुत से मामलों में तो रोगी के मर जाने के बाद भी इलाज के नाम पर मूर्ख बनाकर उसके परिवार से जबरदस्ती अथाह पैसे वसूल लिए जाते हैं.

बड़े-बड़े धार्मिक स्थानों पर भी बिना भारी कीमत चुकाए, दर्शन, पूजा पाठ, प्रसाद लगभग असंभव है.

किसी को अभाव की आग में धकेलना,
किसी व्यक्ति से ज्यादा कीमत वसूलना,
पंडित, पुजारी, डॉक्टर, वैदों का कार्य नहीं हो सकता.

आजकल व्यवसायियों द्वारा अपने फायदे के लिए सामानों में मिलावट किया जाता है. आटा, चावल, दाल जैसे अनाजों में कंकड़, मिट्टी मिलाकर वजन बढ़ाकर बेचते हैं, क्या यह अपराध की श्रेणी में नहीं आता है?

यही नहीं अब तो दवाएं भी नकली बिकने लगी हैं, जिन्हें खाकर पहले से ही बीमार रोगी की क्या दशा होगी इस बात का आसानी से अंदाजा लगाया जा सकता है।

बड़े आश्चर्य की बात है कि हमारे ज्यादातर धर्मग्रंथों में भी दुकानदारों, व्यवसायियों द्वारा किए जाने वाले इन पापों और जघन्य अपराधों का कहीं कोई जिक्र ही नहीं मिलता.

सरकार भी, धर्म का इस्तेमाल जनता पर शासन करने के लिए करती है, क्योंकि घर के बाहर, व्यक्ति और परिवार, सरकार के नियमों का पालन करता है, ताकि उसे जेल ना जाना पड़े, जुर्माना न भरना पड़े और घर में धर्म हेतु, पुण्य हेतु, देवताओं की कृपा पाने हेतु, नर्क से बचने हेतु, आदि विभिन्न धार्मिक भावनाओं के तहत, धर्मगुरुओं की फालतू बातों के झांसे में आकर खुद के और अपने परिवार के जीवन को एक प्रकार से कैदी रूपी जीवन बना लेता है.

प्राचीन काल से ही अधिकांश धर्मग्रंथो में व्यापारियों, व्यवसायियों के द्वारा किए जा रहे कालाबाजारी, मिलावटखोरी, घटतौली जैसे जघन्य अपराधों, पापों और अधर्म का कहीं जिक्र मात्र भी नहीं मिलता है.

कहने का अर्थ ये है की हमारे धर्मग्रंथों ने भी एक तरह से व्यवसायियों द्वारा किए जाने वाले इन जघन्य अपराधों को अपनी मौन स्वीकृति प्रदान की है और आज की सरकारें भी इसे जघन्य अपराध न मानते हुए इन जनता के लुटेरों को प्रोत्साहित करने का ही काम कर रही हैं.

यही कारण है की कालाबाजारी, मिलावटखोरी, घटतौली, मनमाना दाम वसूलना जैसे जघन्य अपराध करने वाले सरकार की छत्रछाया में खूब फल फूल रहे हैं और खुलेआम जनता को लूट रहे हैं.

जनता का खून चूस-चूसकर उन्हें खोखला कर रहे लुटेरे डॉक्टरों, शिक्षा के नाम पर कई गुना अधिक फीस वसूलने वाले संस्थानों, मिलावटी और कीमत से ज्यादा दाम पर सामान बेचने वाले व्यवसायियों, नकली समान और दवाएं बेचने वालों आदि का अपराध चोरी, डकैती, लूटपाट और हत्या करने वालों से कहीं ज्यादा बड़ा और जघन्य है लेकिन अफसोस की हमारा समाज और सरकार इनको अपराधी नहीं बल्कि सम्मानित दर्जा देती है। जबकि ये वो सफेदपोश अपराधी हैं जो देश के लोगों का खून चूसकर उन्हें खोखला करते जा रहे हैं।

आम आदमी तो सरकार द्वारा लगाए गए तमाम टैक्स की मार, महंगाई की मार और खून चूसने वाले भ्रष्ट व्यवसायियों, डॉक्टरों, घूसखोर कर्मचारियों, अधिकारियों आदि के चंगुल में फंसकर कराह रहा है और उसकी सुधि लेने वाला दूर दूर तक कोई नजर नहीं आता। 

माफियाओं के घरों पर तो बुलडोजर चलते हैं लेकिन इन जनता के लुटेरों का कोई कुछ नहीं करता। मनमाना फीस वसूलने वाले शिक्षण संस्थानों, इलाज के नाम पर लूटने वाले प्राइवेट अस्पतालों, मिलावटी और ज्यादा मूल्य पर सामान बेचने वाले व्यवसायियों पर कड़ी कार्यवाही क्यों नहीं करती सरकार? क्यों नहीं इनके घरों पर बुलडोजर चलाया जाता?

ऐसे समाज के लुटेरों को संरक्षण क्यों दिया जा रहा है? यदि ऐसा ही चलता रहा तो इनके अंदर भय कैसे पैदा होगा? कैसे रुकेगी जनता से ये लूटपाट? 

सामान बनाने वाली कंपनियां मनमाने ढंग से महीने में कई कई बार सामान के दाम बढ़ा देती हैं, इसकी खुली छूट इनको किसने दी? टैक्स के नियम तो रोज बदलते नहीं फिर इनके सामान के दाम रोज क्यों बढ़ते हैं? बार बार MRP कैसे बढ़ा देती हैं कंपनियां? क्या इसके लिए कोई नियम या गाइडलाइन होना जरूरी नहीं है?

लगता है सरकार ने इनको जनता को लूटने का लाइसेंस दे रखा है। अच्छे दिन तो आए हैं लेकिन आम जनता के नहीं इन जनता के लुटेरों के।

बुलडोजर सिर्फ माफियाओं पर ही नहीं लाचार मरीजों को लूटने वाले डॉक्टरों, कई गुना ज्यादा फीस वसूलने वाले शिक्षण संस्थानों, नकली और मिलावटी समान बेचने वाले दुकानदारों, व्यापारियों आदि के घरों पर भी चलना चाहिए। क्योंकि इन सफेदपोश अपराधियों ने भोली भाली जनता को कंगाल बना के रख दिया है। 

आज जनता सबसे ज्यादा त्रस्त माफियाओं से नहीं बल्कि इन सफेदपोश अपराधियों से है। ये वो अपराधी हैं जो मिलकर जनता की खून पसीने और मेहनत की कमाई लूटकर उन्हें कंगाल बना रहे हैं।
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