सिर्फ कपड़े ही नहीं आपकी सोच भी ब्रांडेड होनी चाहिए

साल 2021 भी जीवन के पन्ने से रेत की तरह फिसलने को है। इन तमाम वर्षों में मैं जिन अनुभवों से गुजरा, उन्हें आप लोगों से भी शेयर करना चाहता हूं। जैसे-जैसे उम्र बढ़ती गयी, मुझे कुछ बातें अच्छी तरह समझ में आती गई। जैसे...

यदि मैं Rs.5000 की घड़ी पहनू या Rs.50000 की दोनों समय एक जैसा ही बताएंगी!

मेरे पास Rs.500 का बैग हो या Rs.5000 का इसके अंदर के सामान मे कोई परिवर्तन नहीं होगा। 

मैं 500 गज के मकान में रहूं या 5000 गज के मकान में, दोनों में तन्हाई का एहसास एक जैसा ही होगा।

अपने अब तक के इस जीवन के सफर के दौरान मुझे यह भी पता चला कि मैं ट्रेन के Sleeper Class या 1st AC या हवाई जहाज के बिजनेस क्लास में यात्रा करूँ या इकोनॉमी क्लास मे, अपनी मंजिल पर एक ही समय पर पहुंचूंगा।

इसीलिए मुझे लगता है कि अपने बच्चों को सिर्फ अमीर होने के लिए प्रोत्साहित नहीं करना चाहिए, बल्कि उन्हें यह भी सिखाना चाहिए कि वे खुश कैसे रह सकते हैं ? ताकि जब वे बड़े हों, तो चीजों के महत्व को भी देखें सिर्फ उसकी कीमत को नहीं।

किसी दार्शनिक व्यक्ति ने सच ही कहा है कि- 

"ब्रांडेड चीजें व्यापारिक दुनिया का सबसे बड़ा झूठ होती हैं, जिनका असली उद्देश्य तो अमीरों की जेब से पैसा निकालना होता है, लेकिन गरीब और मध्यम वर्ग इससे बहुत ज्यादा प्रभावित होते हैं "

क्या यह जरूरी है कि मैं IPhone लेकर ही चलूं ताकि लोग मुझे ज्यादा समझदार समझें ?

क्या यह आवश्यक है कि मैं रोजाना 
McDonald’s या KFC में ही जाकर खाऊँ ताकि लोग यह समझें कि मैं पैसे वाला हूँ ?

क्या यह आवश्यक है कि मैं प्रतिदिन अपने दोस्तों के साथ उठक-बैठक Downtown Cafe पर जाकर ही लगाया करूँ ताकि लोग यह समझें कि मैं एक रईस परिवार से हूँ?

क्या यह आवश्यक है कि मैं Gucci, Lacoste, Adidas, Woodland या Nike ही पहनूं ताकि high status वाला कहा जाऊँ ?

क्या यह आवश्यक है कि मैं अपनी हर बात में दो चार अंग्रेजी के शब्द जरूर शामिल करूँ ताकि एडवांस कहलाऊं?

क्या यह आवश्यक है कि मैं Hollywood का संगीत ही सुनूँ ताकि ये साबित कर सकूँ कि मैं बहुत एडवांस हो चुका हूँ ?

मेरे हिसाब से इन सब सवालों का जवाब सिर्फ 'ना' ही है। ऐसा क्यों है? आइए अब आपको विस्तार से बताते हैं।

मेरे कपड़े तो छोटी मोटी दुकानों से खरीदे हुए साधारण से कपड़े ही होते हैं। कभी कभार अपने दोस्तों के साथ किसी ढाबे पर भी बैठ जाता हूँ। कभी भूख लगे तो किसी गरीब ठेले वाले से कुछ खरीदकर खाने मे भी अपमान नहीं समझता। 

अपने ही देश में मैंने ऐसे लोग भी देखे हैं जो एक ब्रांडेड जूतों की कीमत में पूरे महीने भर का राशन खरीद सकते हैं। मैंने ऐसे मजबूर परिवार भी देखे हैं जो मेरे एक McDonald’s बर्गर की कीमत में सारे परिवार के खाने का इंतज़ाम कर सकते हैं।

ऐसे ही लोगों को देखकर मैंने ये सीखा कि पैसा ही सब कुछ नहीं है। जो भी लोग किसी की बाहरी हालत देखकर उसकी हैसियत का अंदाज़ा लगाते हैं वे पूरी तरह गलत हैं और भ्रम में जी रहे हैं।

मेरे हिसाब से किसी भी इंसान की असली कीमत का आकलन उसकी इंसानियत, नैतिकता, व्यवहार और उसकी सोच से होना चाहिए ना कि उसकी मौजुदा हालत और रहन सहन से।

आपकी सोच ब्रांडेड होनी चाहिए, फिर चाहे आपके कपड़े ब्रांडेड न भी हों तो कुछ खास फर्क नहीं पड़ता। अमीर-गरीब होने से कोई खास फर्क नहीं पड़ता, क्योंकि खुशी सिर्फ अमीर होने या ब्रांडेड कपड़े पहनने से कभी नहीं मिलती। असली खुशी मिलती है दूसरों के जीवन में खुशियां बिखेरने से। आपको अपने जीवन में असली खुशी का अहसास तब होता है जब आपकी वजह से कोई और खुश होता है। यदि आपकी वजह से कोई दुखी है, किसी की आंखों में आंसूं हैं, तो यकीन मानिए कि सब कुछ होते हुए भी आप इस दुनिया के सबसे गरीब व्यक्ति है।

तो आइए अपने मन के भीतर एक दीप जलाएं और अपनी ब्रांडेड सोच से औरों के जीवन में खुशियां बिखेरने का प्रयास करें। क्योंकि प्रकृति का ये नियम है कि आप दूसरों को जो देते हैं आपको भी वही वापस मिलता है, वो भी ब्याज सहित। तो खुशियां दें और ब्याज सहित खुशियां पाएं। 

यदि आपको मेरा यह लेख अच्छा लगा हो तो इसे शेयर जरूर करें।

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