क्या Baba Ramdev और Patanjali का विरोध करना, मजाक उड़ाना सही है? स्वदेशी का विरोध क्यों?


जैसा कि आजकल देखा जा रहा है कि पतंजलि (Patanjali) के संस्थापक योग गुरु बाबा रामदेव (Baba Ramdev) का हममें से बहुत से लोग मज़ाक़ उड़ाते है। उन पर कटाक्ष करते हुए खूब हास्य व्यंग्य भी करते है। लेकिन क्या आपने यह सोचा है कि वह साधारण सा भगवा लँगोटधारी योगी जिसने Out of the Box (अलग हटकर) सोचते हुए एक Paradigm Shift (क्रांतिकारी बदलाव) किया और एक परिकल्पना को Innovation (अविष्कार) में परिवर्तित कर अपने Objective (उद्देश्य) और Target (लक्ष्य) दोनो को प्राप्त किया।

यहाँ पर हमने जितने भी अंग्रेज़ी के शब्दों का उल्लेख किया है, ये वो सारे शब्द है जो Management की पढ़ाई में सिखाए जाते है और जो सीखते है वे केवल और केवल Computer के Powerpoint Presentation में ही दिखते है। कोई भी इन पर पूरी तरह अमल कभी नहीं कर पाता।

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क्या आपने कभी ये सोचा है की MBA की पढ़ाई करके, Management का इतना ज्ञान लेकर और फ़र्राटेदार अंग्रेज़ी बोलकर, सूट-बूट पहनकर हम एक चने का पैकेट भी अपने नाम से बेचने की क्षमता रखते हैं ?

वहीं उस लंगोट वाले साधारण से व्यक्ति Baba Ramdev ने बिना Management की पढ़ाई किये केवल गुरुकुल के ज्ञान के आधार पर इतना बड़ा Patanjali जैसी Company का करोड़ों का साम्राज्य खड़ा कर दिया कि आज Hindustan Unilever जैसी तमाम बड़ी Multinational कंपनिया तक हिल गयी है। वहीं पतंजलि (Patanjali) के Products गुणवत्ता से भरपूर, Natural, Ayurvedic और Chemical फ्री भी है।  साथ ही सबसे बड़ी बात की अन्य बड़ी कम्पनियों से दाम में भी बहुत कम है। सिर्फ पतंजलि (Patanjali) के टूथपेस्ट ने ही भारतीय बाजार पर कब्ज़ा जमाये Hindustan Unilever  को घुटने टेकने पर मजबूर कर दिया जिसका नतीजा है कि उसने भी आयुर्वेद (Ayurved) के नाम पर 'वेदशक्ति' (Vedshakti) सीरीज के प्रोडक्ट लांच किए।


हमें तो उस लंगोटधारी असाधारण व्यक्ति का बहुत-बहुत आभारी होना चाहिए जिस व्यक्ति ने हमें "Made in India" की जगह "Made In Bharat" लिखना सिखाया। 'आत्मनिर्भर भारत' (Atmanirbhar Bharat) की मुहिम को आगे बढ़ाया। हमें केमिकल वाले जहरीले प्रोडक्ट्स का आयुर्वेदिक, नेचुरल और स्वदेशी विकल्प दिया। जो कि बहुराष्ट्रीय कम्पनियों से गुणवत्ता में कहीं बेहतर होते हुए भी उनसे सस्ते दामों में उपलब्ध हैं।

पतंजलि के प्रोडक्ट्स के बारे में जो तमाम तरह की मनगढ़ंत फिजूल अफवाहें मीडिया में फैलाई जा रही हैं उसके पीछे की सबसे बड़ी वजह यह है कि हमारा देश भारत जिसकी जनसंख्या 135 करोड़ है, यह पूरे विश्व की फार्मा कम्पनियों का सबसे बड़ा बाजार है। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर फैले इसर्बों रुपये के सबसे बड़े कारोबार से प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से लाखों लोग जुड़े हुए हैं। डॉक्टर्स, पैथोलॉजी, दवा कम्पनियां, दवा विक्रेता, बिचौलिए इन सबका एक बहुत बड़ा नेटवर्क है, जो कि हमारे देश की भोली भाली जनता को बीमारियों के जाल में फंसाकर मिलकर लूट खसोट रहे हैं। 

इन फार्मा कम्पनियों का मकड़जाल इतना बड़ा है की वो किसी ऐसी कम्पनी को आगे बढने देने के लिए पुरा जोर लगा देते हैं जो सस्ती और बिना साइड इफ़ेक्ट की दवाएं बना दे। क्योंकि ये अरबों हजारों करोड़ रुपये का लूटतंत्र है। जब लोग बीमार ही नहीं पड़ेंगे या आसानी से ठीक हो जाएंगे तो इनका व्यापार कैसे चलेगा? 

ऐसा ही हुआ जब बाबा रामदेव ने सबसे पहले कोरोना की दवा Coronil (कोरोनिल) बना दिया। बड़ी बड़ी कंपनियां जो इस आपदा को एक बड़े अवसर के रूप में देख रही थी उनमें हड़कंप मच गया। इसलिए सबने मिलकर कोरोनिल को गलत साबित कर दिया गया। जबकि जमीनी हकीकत यह है कि अपने देश में पतंजलि की कोरोना किट और कोरोनिल खाकर ही अधिकतर लोग कोरोना से रिकवर हुए हैं। 
मेरे कई जानने वालों ने खुद अपने अनुभव मुझसे शेयर करते हुए कहा कि जब उन्हें कोरोना हुआ तो वो घर पर ही होम आइसोलेशन में रहे और खुद से ही पतंजलि की कोरोना किट और कोरोनिल खरीदकर इस्तेमाल किया और पूरे परिवार को भी इस्तेमाल कराया। और सब कोरोना से पूरी तरह रिकवर हुए। यही कारण है कि पतंजलि की कोरोनिल ( Coronil) की पूरे देश में जबरदस्त मांग के चलते यह बाजार में आसानी से उपलब्ध नहीं हो पा रही है। आलम यह था कि दुगने तिगुने दामों पर भी लोगों ने इसे खरीदा। 
सबसे बड़ी सच्चाई यही है कि भारत में कोरोना से जो रिकवरी रेट हर देश से ज्यादा है इसकी वजह यही है कि कोरोनिल और गिलोय खाकर ही अधिकतर लोग कोरोना से ठीक हुए हैं। गिलोय कोरोना पर इफेक्टिव है ये बाबा रामदेव ने ही तो बताया हम सबको? वरना अमेरिका जैसे साधन सम्पन्न देश सहित पूरी दुनिया में क्यो इतने अधिक लोग कोरोना से मर रहे हैं?

मतलब की बाबा रामदेव (Baba Ramdev) सस्ती आयुर्वेदिक दवाएं (Ayurvedic Medicines) बना रहे हैं जिससे लोग सस्ते में ठीक हो जा रहे हैं और इनके आयुर्वेदिक प्रोडक्ट के साइड इफेक्ट्स न होने से दोबारा बीमार पड़ने की संभावना भी कम होगी, तो इसका नुकसान किसे होगा? फार्मा कम्पनियों, पैथोलॉजी, डॉक्टर्स सब बर्बाद हो जाएंगे ऐसे तो? जब इनके धंधे पर बन आयी तो पतंजलि (Patanjali) के प्रोडक्ट्स को लेकर तमाम तरह की अफवाहें फैलाई जाने लगी।


अब अपने देश में तो हर स्वदेशी कम्पनी, भारतीय उद्योगपति, स्वदेशी प्रोडक्ट के अंधे विरोध की लहर सी चल पड़ी है। विदेशी दवाएं, वैक्सीन, कम्पनियाँ यहाँ के लोगों को स्वीकार है लेकिन स्वदेशी से बहुत चिढ़ है, क्योंकि यहाँ विरोध की वामपंथी बयार चल रही है। इसका सबसे ताजा उदाहरण स्वदेशी कोरोना वैक्सीन (Corona Vaccine) का देश में चल रहा विरोध है। भारतीय कम्पनी Reliance, Jio और उद्योगपति अम्बानी (Ambani), अडानी (Adani) का विरोध भी इसी की एक कड़ी है। 
जरा ध्यान से सोचिए कि कहीं हम स्वदेशी कम्पनियों और उद्योगपतियों का विरोध करके अपनी आने वाली पीढ़ी को विदेशी कंपनियों का गुलाम तो नहीं बना रहे? साथ ही भारतीय प्रतिभाओं को हतोत्साहित करके प्रतिभा पलायन को मजबूर तो नहीं कर रहे? देश में कोरोना (Corona) की वैक्सीन (Vaccine) बनाने वाले वो वैज्ञानिक यदि हतोत्साहित होकर भारत छोड़ अमेरिका या किसी अन्य देश चले जाएं तो क्या इससे उनका कोई नुकसान होगा या हमारे देश का बड़ा नुकसान होगा? क्या इसी कारण हमारे देश के सभी अच्छे वैज्ञानिक, डॉक्टर, इंजीनियर, बिजनेसमैन, लेखक आदि आज विदेशों में जाकर अपनी सेवाएं दे रहे हैं?
वामपंथियों और धूर्त नेताओं की चाल में फंसकर स्वदेशी का विरोध करने वाले लोग 'आत्मनिर्भर भारत' (Atmanirbhar Bharat),  'Vocal for Local', 'Make in India' जैसे अभियानों के दूरगामी अच्छे परिणामों के बारे में शायद सोच ही नहीं पाते, कि कैसे ये सभी अभियान हमारे देश को विदेशी कम्पनियों की गुलामी  से आज़ाद करके किस तरह हमारी अर्थव्यवस्था को मजबूती प्रदान करेंगे। ऐसे सभी अंध विरोधी लोग अपनी ही आने वाली पीढ़ियों के सबसे बड़े दुश्मन हैं और उन्हें आत्मनिर्भर नहीं गुलाम और बंधुआ मजदूर बनाना चाहते है।

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जय हिंद!!
वन्दे मातरम!!



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