Gorakhpur के डॉक्टरों, अस्पतालों और पैथोलॉजी के जाल में फंसकर लुट रहे हैं लोग

Gorakhpur News in Hindi: मैं एक दिन Gorakhpur के एक मशहूर डॉक्टर को दिखाने के लिए उनके क्लिनीक पर गया था. दरअसल Gorakhpur में किसी भी डॉक्टर को दिखाने के लिए पहले उनसे अप्वाइंटमेंट लेना पड़ता है, जिसे आम बोलचाल की भाषा में नंबर लगवाना कहते हैं. मैं भी नंबर लगवाने ही गया था. जब मैं काउंटर पर पहुंचा तो वहां एक दंपति पहले से ही नंबर लगवाने की जद्दोजहद में थे. नंबर लगाने वाले कर्मचारी का कहना था कि सामान्य नंबर फुल हो चुका है, इमरजेंसी वाला नंबर ही मिल पाएगा. उसकी फीस 1000 रुपये है. 


एक हजार रुपये फीस सुनकर वह दंपति थोड़ा झिझके. फिर उन्होंने कहा कि उन्हें सामान्य फीस पर ही दिखाना है. इस पर उस कर्मचारी ने कहा कि आज नहीं हो पाएगा, अगले दिन सुबह 7 बजे आइए तो नंबर लगेगा. यह सुनकर उस दंपति ने कर्मचारी से विनती की कि आज का ही नंबर दे दी दीजिए. लेकिन कर्मचारी पर उनकी विनती का कोई असर नहीं हुआ.

मेरा नंबर आया तो कर्मचारी ने मुझसे भी यही बात कही. मैंने भी उस कर्मचारी से मिन्नत की कि वह आज का ही नंबर दे दे. लेकिन कर्मचारी टस से मस नहीं हुआ. वह अपनी बात पर अड़ा रहा. लेकिन 1000 हजार रुपये देने पर इमरजेंसी का नंबर देने को तैयार था. 


मैं उसे 1000 रुपये देने को तैयार नहीं था, क्योंकि मेरे साथ कोई इमरजेंसी जैसी बात नहीं थी, इसलिए मैं वापस लौट आया. इससे पहले भी इसी तरह की परिस्थितियों में मैं कई बार वापस लौटा था. 

Gorakhpur में बहुत से डॉक्टर ऐसे हैं, जिनके यहां एकदम सुबह ही नंबर लगता है. ऐसे में कई बार तो लोग नंबर पाने की उम्मीद में आधी रात के बाद ही चले आते हैं और पूरी रात सड़क पर बिताते हैं. Gorakhpur शहर के लोगों के लिए तो यह संभव है कि वो आएं और अपना नंबर लगवा के चले जाएं. लेकिन बाहर से आने वाले लोगों के लिए यह व्यवहारिक नहीं है.  


एक बार एक बुजुर्ग महिला मुझे एक क्लीनिक पर रोते हुए मिली. उन्होंने बताया कि वो चौथी बार बिना डॉक्टर को दिखाए वापस लौट रही हैं. उन्होंने बताया कि वो Bihar के छपरा से आई हैं. उनके घर में कोई पुरुष सदस्य़ नहीं हैं. ऐसे में वो अपने गांव के ही किसी व्यक्ति के साथ आती हैं. लेकिन नंबर न मिल पाने की वजह से उन्हें लौट जाना पड़ता है. आने-जाने पर पैसा अलग से खर्च होता है. जब मेरी उस बुजुर्ग महिला से मुलाकात हुई तब वो चौथी बार बिना डॉक्टर को दिखाए खाली हाथ लौट रही थीं.

दरअसल Gorakhpur में इस तरह की स्थितियों का सामना लोगों को रोज ही करना पड़ता है. Gorakhpur में Purvanchal के आसपास के जिलों के साथ-साथ पड़ोसी राज्य Bihar और पड़ोसी देश Nepal के मरीज भी बड़ी संख्या में इलाज के लिए आते हैं. ऐसे में Gorakhpur आज के समय में निजी अस्पतालों, डॉक्टरों, दवाओं, पैथोलॉजी और इलाज का एक बड़ा हब बन चुका है. 


बता दें कि Gorakhpur में आस-पास के जिलों, Bihar और Nepal की तरफ से आने वाली गाड़ियों में बड़ी संख्या में मरीज आते हैं. ये मरीज Gorakhpur में कुकुरमुत्ते की तरह फैले अस्पतालों, क्लिनिकों, नर्सिंग होमों आदि में इलाज कराते हैं.

अभी कुछ दिनों पहले मेरे एक करीबी मित्र को Gorakhpur के एक बड़े अस्पताल में भर्ती कराया गया. वह ऐसा समय था, जब अधिकांश अस्पताल मरीजों को भर्ती करने से बच रहे थे. ऐसे में किसी तरह उस नर्सिंग होम ने उन्हें भर्ती किया. इसलिए हम सब डॉक्टर साहब के एहसानमंद थे.


मेरे मित्र को पहले दिन से ही आईसीयू में रखा गया था. आईसीयू ऐसा कि उसका मॉनिटर काम नहीं करता था. बीपी, फीवर, पल्स रेट आदि की रीडिंग मैनुअल की करनी पड़ती थी. लेकिन वह मॉनिटर हमेशा शरीर से जुड़ा रहता था. वहाँ की गन्दगी का आलम देखकर किसी खैराती अस्पताल की याद आ जाती थी। आईसीयू के शौचालय में दूसरे मरीज शौच के लिए आते थे. साफ-सफाई और हाइजीन का बहुत बुरा हाल था. लेकिन फिर भी आईसीयू का पूरा पैसा वसूल लिया गया.    

यह तो हुआ Gorakhpur के डॉक्टरों का एक पहलू. इनका दूसरा पहलू है दवाओं के कारोबार का. कुछ डॉक्टर तो ऐसे हैं, जिनकी लिखि दवाएं केवल उनके ही दवाखाने पर मिलती है, कहीं और नहीं. 


Gorakhpur में ऐेसे ही एक चर्म रोग विशेषज्ञ हैं. वो अपने नाम से ही दवाएं बनवाते हैं. उनकी लिखी दवा कहीं और नहीं मिलेगी. एक बार उनकी पर्ची लेकर मैं लखनऊ के एक मेडिकल स्टोर पर गया. वहां उनकी पर्ची देखकर केमस्टी चकरा गया. उसने पर्ची पर दिए नंबर पर फोन कर डॉक्टर से बातचीत की. फिर डॉक्टर ने उन दवाओं के बारे में बताया. उससे साफ हुआ कि सभी सामान्य दवाएं हैं और किसी भी मेडिकल स्टोर पर मिल सकती हैं. लेकिन डॉक्टर साहब ने दवा कंपनियों से कहकर अपने नाम से दवाएं बनवाई थीं. और उस ब्रांड नेम से दवाएं केवल उनके क्लीनिक में ही मिलती हैं. 

इन प्राइवेट प्रैक्टिस करनेवाले संवेदनहीन डॉक्टरों की कमाई का एक बड़ा जरिया और भी है। वो है पैथोलॉजी वालों से कमीशनखोरी। यहाँ के हर डॉक्टर की शहर के लगभग सभी पैथोलॉजी वालों से सेटिंग है। जब भी डॉक्टर अपनी पर्ची पर कोई टेस्ट लिखकर मरीज को किसी पैथोलॉजी में जांच कराने भेजता है तो हर टेस्ट पर 50-60% तक कमीशन वो पैथोलॉजी वाला डॉक्टर के पास ईमानदारी से भेजवा देता है। आजकल पैथोलॉजी वालों के सॉफ्टवेयर में Referred By का एक ऑप्शन बना हुआ है उसमें जिस डॉक्टर का नाम भरा जाएगा उसे कमीशन पहुंचा दिया जाता है।

दवा कंपनियों से डॉक्टरों की सांठगांठ तो जगजाहिर है। सबको पता है कि फार्मा कम्पनियां अपनी कम्पनी की दवा लिखने के बदले डॉक्टरों को लाखों रुपये का वर्ल्ड टूर तक कराती हैं। शराब, शबाब, कबाब और महंगे गिफ्ट्स का लालच देकर फार्मा कम्पनियों के रिप्रेजेन्टेटिव इन लालची डॉक्टरों को अपनी दवा लिखने के लिए राजी करते हैं। और ये यमदूत बिना सोचे समझे अपने लाभ के लिए किसी भी ऐरी गैरी फर्जी फार्मा कम्पनी की दवाएं मरीजों को खरीदने पर मजबूर करते हैं। जिन्हें खाकर मरीज ठीक होने की बजाय मौत के मुंह में चला जाता है।


तो ये है Gorakhpur के डॉक्टरों का मकड़जाल. जहाँ गरीब आदमी डॉक्टरों, दवा कंपनियों, नर्सिंग होमं और पैथालॉजी के जाल में फंसकर बुरी तरह पिस रहा है और अपनी मेहनत की कमाई गंवा दे रहा है लेकिन उसकी सुनने वाला कोई नहीं है. अक्सर यहाँ के प्राइवेट अस्पतालों में ये नजारा देखने को मिलता है जब इलाज का बिल बाकी होने की स्थिति में अस्पताल वाले मरीज की लाश तक रोक लेते हैं। यही नहीं कई बार तो ऐसा भी देखने में आया है जब मरीज की मौत हो जाने के बाद भी ICU का बिल बढ़ाने के लिए अस्पताल वाले मृत व्यक्ति को भी घण्टों तक ICU में रखे रहते हैं।

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