'फैसला ऑन द स्पॉट' वाला फार्मूला है जनता की नजर में सुपरहिट, भ्रष्ट न्याय प्रणाली से उठ चुका है लोगों का विश्वास

जब भी हम कोई मुम्बईया फिल्म देखते हैं और उसमें हीरो पुलिसवाला बनकर गुनहगारों को ऑन द स्पॉट ठोकता है, तो हम बड़े खुश होते हैं और जहाँ तक मेरी जानकारी है आजतक ऐसी हर फिल्म सुपरहिट हुई है। चाहे वो अमिताभ वाली जंजीर हो, सलमान वाली दबंग, या रणवीर की सिम्बा या ऐसी ही कोई और फ़िल्म। अब तक ऐसी हर फिल्म जबरदस्त हिट साबित हुई है। 

जब कोई फिल्मी हीरो पर्दे पर पुलिसवाला बनकर बिना कानून की परवाह किये अपराधियों को ऑन द स्पॉट ठोकता है तो हम बहुत खुश होते हैं और ऐसी फिल्म को खूब पसंद करते हैं। क्योंकि हमें इस तरह का ऑन द स्पॉट न्याय पसंद है। हम गुनहगारों को ऐसी सजा दिए जाने को सही समझते हैं। 

अब असल मुद्दे पर आते हैं....कल सुबह खबर आई कि यूपी STF ने कानपुर में 8 पुलिसवालों की निर्मम हत्या के दोषी 5 लाख के इनामी गैंगस्टर विकास दुबे को एनकाउंटर में मार दिया है। यूपी STF द्वारा बताया गया कि विकास दुबे को उज्जैन से कानपुर लाते वक्त रास्ते में उसकी गाड़ी अनियंत्रित होकर पलट गई जिसके बाद विकास दुबे भागने का प्रयास कर रहा था और पुलिस द्वारा उसे भागने से रोकने की कोशिश की गई इस दौरान लगी पुलिस की गोली से घायल विकास दुबे की अस्पताल ले जाते वक्त मौत हो गयी।

अब जैसा की अपने देश में हमेशा होता है, इस खबर के फैलते ही शुरू हुआ इस घटना के पोस्टमार्टम और सरकार की टांग खिंचाई का दौर...

टोंटीचोर नकलोल ने कहा कि नहीं मारते तो सरकार गिर जाती, क्योंकि सरकार के लोग भी शामिल थे उसकी मदद करने में। जबकि हकीकत यह है कि विकास दुबे सपाई ही था और उसकी पत्नी सपा के ही बैनर तले जिला पंचायत का चुनाव भी लड़ी थी। सपा को 20 हजार देकर आजीवन सदस्यता भी ली थी। 

दौलत की बेटी हाथीवादी नेताईंन बोली कि इस घटना की सुप्रीम कोर्ट द्वारा जांच कराई जानी चाहिए। लेकिन इनकी नाजायज संपति की यदि जांच होती है तो वो बहुत बड़ा सामाजिक अन्याय है, क्योंकि ये दलित हैं और इनको ये अधिकार इनके अम्बेडकर ने लिखकर दिया है।

अब बात करते हैं हर मामले में सबसे ज्यादा ढेंचू ढेंचू करने वाले मिलावटी घराने की। अब इनको तो ये एनकाउंटर सरासर नाजायज और अन्याय लगेगा ही क्योंकि इन्होंने तो 26/11 वाले आतंकी कसाब को करोड़ों की बिरयानी खिला-खिलाकर तारीख पे तारीख वाला न्याय दिलाया था। 

यदि आप सबको कसाब का केस याद हो तो आपने देखा होगा कि भारतीय न्याय प्रणाली का इतना बड़ा मजाक, इतनी बड़ी दुर्दशा और लाचारी शायद ही कभी देखने को मिली हो।

भारतीय न्याय प्रणाली की ऐसा ही दुर्दशा अभी हाल ही में निर्भया के हत्यारों की फांसी को लेकर देखने को मिली थी।

आजतक वाले तो नहा धोकर पीछे पड़ गए हैं योगी सरकार के। क्योंकि इनकी मीडिया वैन उज्जैन से लगातार STF के काफिले का पीछा कर रही थी लेकिन बेचारों को एनकाउंटर का लाइव टेलीकास्ट दिखाकर अपनी टीआरपी बढ़ाने का मौका नहीं दिया गया। बोलते हैं कि एनकाउंटर के वक्त सिर्फ 15 मिनट इनको पीछे रोक दिया गया था।

कुछ लोग ये भी कह रहे हैं कि यदि पुलिस ही फैसला और न्याय करेगी तो न्यायपालिका का क्या औचित्य रहेगा?

मेरी समझ से तो ऐसी सड़ी हुई न्यायव्यवस्था और न्यायपालिका को खत्म ही कर देना उचित है जो पीड़ित को न्याय ही न दिला पाए और दोषी को समय पर सजा न दिला पाए।

न्याय यदि समय पर न हो सके तो वो अन्याय ही बन जाता है। फिर ऐसे लंबे समय तक चलने वाली न्याय प्रक्रिया से लाभ तो सिर्फ गुनहगारों और अपराधियों को ही मिलता है, पीड़ित को कहां न्याय मिलता है?

अपने देश की न्याय प्रणाली तो अब पैसे वालों की जेब में रहती है। पैसा है तो आप   देर रात शराब पीकर फुटपाथ पर सो रहे लोगों को कुचलकर मार दो...केस चलेगा..तारीखें पड़ेगी और अंत में ले देकर सब सेटल हो जाएगा, आपका कुछ नहीं उखड़ेगा।

पैसा है तो गुनाह करो पुलिस बिक जाएगी, गवाह बिक जाएगा, वकील, जज बिक जाएगा और मामला खत्म गुनाह खत्म।

पैसा है तो मर्डर करो और आत्महत्या साबित कर दो..ले देकर फ़ाइल क्लोज। इसका ताजा उदाहरण बॉलीवुड के होनहार और जिंदादिल एक्टर सुशान्त सिंह राजपूत की हत्या है जिसे बड़ी सफाई से आत्महत्या साबित कर दिया गया।


ऐसी ही न्यायप्रणाली के भरोसे पर 8 पुलिसवालों की हत्या करनेवाले नरपशु को छोड़ दिया जाता तो क्या हश्र होता ये सबको पता है। वो जेल में भी पैसे के दम पर शानो शौकत से रहता, दरबार लगाता, अपना गैंग चलाता, वसूली, फिरौती, रंगदारी सब चकाचक करता। जेल में मुर्गा, बकरा, दारू की दावत उड़ाता, खुद भी खाता और पुलिस वालों को भी खिलाता।

फिर कुछ दिन बाद कोर्ट उस कानून की सॉलिड बेइज्जती करने वाले गुंडे को बाईज्जत बरी कर देता क्योंकि उसका वकील भी तगड़ा होता जो जज को भी सेट कर ही लेता।

कहने का मतलब ये है कि इस सड़ी हुई और भ्रष्टाचारयुक्त न्याय प्रक्रिया से देश का हर आम व्यक्ति नफरत करने लगा है। क्योंकि वो इसका भुक्तभोगी है। इस प्रक्रिया से कभी किसी पीड़ित को समय पर न्याय नहीं मिला और न ही किसी अपराधी को समय से सजा। 

इसलिए इस 'ऑन द स्पॉट न्याय' वाले फॉर्मूले से देश का हर आम नागरिक पूरी तरह एग्री करता है और इससे पूरी तरह खुश और संतुष्ट भी हैं। 

बाकी रही खादी वालों की बात तो उनका तो परम कर्तव्य ही है सरकार की टांग खींचना और उसके हर फैसले, हर काम पर सवाल खड़े करना। विरोध करना उनके राजनैतिक पेशे की मजबूरी भी है। यदि वो सरकार का समर्थन करने लगे तो विपक्ष वाले कैसे कहलायेंगे।

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-संजय राजपूत
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1 Comments
  • Unknown
    Unknown 11 जुलाई 2020 को 11:41 am बजे

    Exactly correct you are. Opposition will always comment reverse, you do right or wrong.

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