वेब सीरिज के नाम पर गन्दगी परोसने वाले OTT प्लेटफार्म पर रोक क्यों नहीं लगा रही सरकार?

Internet की देन है कि Porn Video आज मोबाईल के एक क्लिक पर उपलब्ध हैं। परंतु ये सब चीजें आज से दो दशक पहले तक इतनी सर्वसुलभ बिल्कुल नहीं होती थी। उस दौर में नग्नता और सेक्स Video में नहीं बल्कि किताबों, मैगज़ीन्स आदि में परोसा जाता था। उस जमाने की मशहूर Magazines होती थीं Playboy, Debonair आदि और चोरी छिपे बिकने वाली देशी सेक्स स्टोरी खूब बिकती थी 'मस्तराम' (Mastram) के नाम से। जिस पर इसी नाम से Web Series भी बन चुकी है। Mastram की उस जमाने में खूब डिमांड हुआ करती थी।

उस दौर में बुक स्टॉल (Book Stall) भी हर गली मोहल्ले में खूब हुआ करते थे, जहां किराये पर कॉमिक्स (Comics), नॉवेल (Novel), मैगजीन (Magazine), पत्रिका आदि किराये पर मिलते थे। और इन्हीं बुक स्टॉल पर चोरी छिपे अश्लील साहित्य भी बिकता और किराये पर मिलता था। उन दिनों सुरेंद्र मोहन पाठक (Surendra Mohan Pathak) के Suspense, Thriller जासूसी नॉवेल का मैं भी बहुत बड़ा फैन हुआ करता था। जैसे ही उनका कोई नया उपन्यास बुक स्टॉल पर आता मैं तुरन्त उसे किराये पर लाकर जरूर पढ़ता। हालांकि उपन्यास पढ़ने की घर में परमिशन तो नहीं थी लेकिन उन दिनों सुरेंद्र मोहन पाठक के सस्पेंस और थ्रिलर नॉवेल पढ़ने का जुनून इतना था कि चोरी छिपे लाकर पढ़ ही लेते थे। कई बार तो नॉवेल पूरा खत्म करने के जुनून में रात रात भर जागते भी थे। कई बार चोरी पकड़ी भी गयी और खूब डाँट भी खानी पड़ी। फिर जब घर पर सख्ती हुई तो मजबूरन नॉवेल पढ़ने के अपने जुनून को छोड़ना पड़ा।


हमारे शहर में मैगज़ीन (Magazine) किराये पर देने वाला एक बुक स्टोर (Book Store) हुआ करता था। बुक स्टोर का मालिक उन दिनों हर तरह की मैगज़ीन, उपन्यास, अश्लील साहित्य आदि किराये पर देता था और उसके चोरी छिपे बिकने वाले मस्तराम टाइप के अश्लील साहित्य के दीवाने नवयुवकों से लेकर अधेड़ उम्र के व्यक्ति तक हुआ करते थे। ये वही स्थिति थी जो साइबर कैफे (Cyber Cafe) खुलने के बाद केबिन सुविधा वाले cyber cafe में Porn देखने वालों की होती थी।

अश्लील साहित्य के दीवानों में हमारे मोहल्ले का एक नवयुवक भी था। उसे अश्लील साहित्य पढ़ने की लत लग गयी थी जिसे खरीदने के लिये वह कभी अपने पिता की जेब तो कभी माँ के पर्स से पैसे उड़ाया करता था। क्योंकि कोई भी बुरी लत ही इंसान से सारे गुनाह कराती है।

एक दिन उस बेचारे की ग्रहदशा खराब चल रही थी। उसने अपने बिस्तर के नीचे ऐसी ही एक मस्तराम (Mastram) टाइप किताब छिपाई हुई  थी। कमरे की साफ सफाई करते समय उसकी माँ की नज़र उस किताब पर गयी। फिर उसकी मां ने वो किताब पिता के हाथ में थमा दी। उस किताब के जब पन्ने पलटे तो उसके पिता को समझ आया की बंद कमरे में देर रात तक लड़का कौन से सब्जेक्ट (Subject) की पढ़ाई करता है।

फिर क्या था क्रोध से उसके पिता की तीसरी आँख खुल गयी और उस बेचारे की उस दिन खूब तसल्ली से पिटाई हुई। पीट पाट के पिता का गुस्सा शांत हुआ ही था कि अचानक उनके मन में ये विचार आया कि इतनी महंगी किताब के लिये बालक के पास पैसे कहाँ से आये और पैसे आ भी गये तो उसने ये गंदी किताब खरीदी कहाँ से?

उसके पिता की तीसरी आंख एक बार फिर खुल गयी। फिर शुरू हुआ थर्ड डिग्री टॉर्चर...दे पिछवाड़े पर लट्ठ....दे कान पर थप्पड़.....मार मारकर बाप ने आखिर उससे उगलवा ही लिया की सुपुत्र महाशय किताब खरीदने के लिये उनकी जेब से पैसे उड़ाते थे। साथ ही यह भी उगलवा लिया की शहर में वो कौन विक्रेता है जो ऐसी गन्दी किताबें बेचता है। 

फिर क्या था, गुस्से से आग बबूला बाप ने आव देखा न ताव, लड़के को स्कूटर की पिछली सीट पर बिठाया और सीधा उस बुक स्टोर (Book Store) पर पहुंच गये। पहुंचते ही बुक स्टोर के मालिक की गर्दन पकड़ ली और चिल्लाते हुए बोले "साले...सारे शहर के लौंडों को जवान करने का ठेका तूने ही उठा रखा है क्या?" उसे जी भर के नॉन वेज गालियां सुनाई और सख्त हिदायत भी दी की अगर भविष्य में मेरे लड़के के पास तेरे से खरीदी ऐसी गन्दी किताब दिख गयी तो लड़के की हड्डी तो मैं बाद में तोडूंगा...पहले तेरा मोर बनाऊंगा। इतना मारूंगा, इतना मारूंगा की तू गिनती भूल जायेगा। उस दिन खूब तमाशा हुआ और सबको पता चला कि आखिर माजरा क्या था।

ये कहानी सुनाने का कारण है आजकल OTT प्लेटफार्म पर Web Series के नाम पर परोसा जा रहा कचरा। यदि देखा जाय तो Porn से कहीं अधिक घातक है ये ओटीटी प्लेटफार्म। खुलकर गालियों का प्रयोग, बेडरूम सीन्स की भरमार वाली इन Web Series का हमारे समाज पर बुरा असर साफ दिखाई भी देने लगा है। उदाहरण के लिए अभी कुछ दिनों पहले 'मिर्ज़ापुर' वेब सीरीज (Mirzapur Web Series) का दूसरा सीजन दिखाया गया था। जिसमें एक डायलॉग था "भो*** के चचा" ये डायलॉग युवाओं में इतना फेमस हो गया है कि आप भी अपने आसपास के लड़कों को किसी अंकल टाइप के व्यक्ति के लिए ऐसे शब्द प्रयोग करते आसानी से देख सकते हैं। इसी वेब सीरीज में ब्राह्मणों के बारे में एक बहुत ही आपत्तिजनक बात और दिखाई गई थी। इसमें दिखाया गया था कि ब्राह्मण परिवार में बूढ़ा ससुर अपनी बहू से अवैध संबंध रखता है। जो दिखाया गया वो बहुत ही आपत्तिजनक था लेकिन Mirzapur वेब सीरीज के खिलाफ ब्राह्मण समाज ने विरोध क्यों नहीं किया ये समझ से परे है। यही कारण है कि इस तरह के कंटेंट को बढ़ावा मिल रहा है।

इन दिनों तांडव का बहिष्कार जिस स्तर पर हुआ है उसने एक बात तो स्पष्ट कर दी है के आने वाले समय में अगर कोई भी हिन्दुत्त्व के खिलाफ कुछ आपत्तिजनक दिखाने की कोशिश करेगा तो वह बक्शा नहीं जायेगा। 

परन्तु यदि देखें तो हिंदुत्व को अपमानित करने वाला "तांडव" जैसा सिनेमा बनाने वाले फिल्मकार जितने दोषी हैं उतने ही दोषी वह प्लेटफार्मस Amazon, Netflix आदि भी हैं जिन पर ऐसा मसाला प्रदर्शित किया जाता है। 

Amazon और Netflix ऐसे प्लेटफार्म हैं जिनके दम पर 'तांडव' (Tandav) और मिर्ज़ापुर (Mirzapur) जैसी वेब सीरीज़ रिलीज़ की जाती हैं। यह बुक स्टोर चलाने वाले वह विक्रेता हैं जो किताबें बेचने की आड़ में हिंदुत्व विरोधी प्रोपोगेंडा बेच रहे हैं और हिंदुत्व विरोधी विचारधारा को बढ़ावा देने का काम कर रहे हैं।

इस सबको रोकने का सबसे अच्छा और सटीक तरीका है Amazon Prime और Netflix जैसे गन्दगी परोसने वाले ओटीटी प्लेटफॉर्म्स की मेम्बरशिप (Membership) छोड़ना। बायकॉट "तांडव" (BoycottTandav) से ज्यादा जरूरी है "अनइंस्टॉल ऐमेज़ॉन प्राईम" (Uninstall Amazon Prime), अनइंस्टाल नेटफ्लिक्स (Uninstall Netflix).

याद रखिये जब यह दुकानें बंद होंगी तो इन दुकानों पर मिलने वाला बेहूदा माल बिकना अपने आप बंद हो जाएगा। तो आज से ही अपने धर्म, अपनी संस्कृति की रक्षा के लिए शुरू करिए बहिष्कार ऐसे सभी ओटीटी प्लेटफॉर्म्स का जो अभिव्यक्ति की आज़ादी के नाम पर हमारे धर्म और संस्कृति पर हमला कर रहे हैं। पहल हमें और आपको खुद ही करनी होगी क्योंकि सरकार की तमाम मजबूरियां होती हैं, वो किसी एक जाति या धर्म के हित के लिए कोई कार्य नहीं कर सकती।

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